कथामुख- पंचतंत्र की कहानियाँ - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Kathamukh - Panchtantra ki kahaniyan - Panchtantra - Vishnu Sharma
कथामुख: पंचतंत्र की कहानियाँ
दक्षिण देश के एक प्रांत में महिलारोप्य नाम का नगर था। वहाँ एक महादानी, प्रतापी राजा अमरशक्ति रहता था। उसके पास अन्नत धन था; रत्नों की अपार राशि थी; किंतु उसके पुत्र बिल्कुल जड़बुद्धि थे। तीनों पुत्रों- बहुशक्ति, उग्रशक्ति तथा अनंतशक्ति को होते हुए भी वह सुखी न था। तीनों अविनीत, उच्छृंखल और मूर्ख थे।
राजा ने अपने मंत्रियों को बुलाकर पुत्रों की शिक्षा के संबंध में अपनी चिंता प्रकट की। राजा के राज्य में उस समय 500 वृत्ति-भोगी शिक्षक थे। उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जो राजपुत्रों को उचित शिक्षा दे सकता। अन्त में राजा की चिंता को दूर करने के लिए सुमति नाम के मंत्री ने सकलशास्त्र-पारंगत आचार्य विष्णु शर्मा को बुलाकर राजपुत्रों का शिक्षक नियुक्त करने की सलाह दी।
राजा ने विष्णुशर्मा को बुलाकर कहा कि यदि आप इन पुत्रों को शीघ्र ही राजनीतिज्ञ बना देंगे तो मैं आपको 100 गांव इनाम में दूँगा। विष्णु शर्मा ने हँसकर उत्तर दिया- “ महाराज! मैं अपनी विद्या को बेचता नहीं हूँ। इनाम की मुझे इच्छा नहीं है। आपने आदर से बुलाकर आदेश दिया है इसलिये 6 महीने में ही मैं आपके पुत्रों को राजनीतिज्ञ बनादूंगा। यदि में इसमें सफल न हुआ तो अपना नाम बदल डालूंगा।”
आचार्य का आश्वासन पाकर राजा ने अपने पुत्रों का शिक्षण-भार उनपर डाल दिया और निश्चिंत हो गया। विष्णु शर्मा ने उनकी शिक्षा के लिए अनेक कथाएं बनाईं। उन कथाओं द्वारा ही उन्हें राजनीति और व्यवहार-नीति की शिक्षा दी। उन कथाओं के संग्रह का नाम ही ‘पंचतन्त्र’ नाम दिया गया।
राजपुत्र इन कथाओं को सुनकर 6 महीने में ही पूरे राजनितिज्ञ बन गये। उन पांच प्रकरणों के नाम हैः 1. मित्रभेद, 2. मित्रसम्प्राप्ति, 3. काकोलुकीयम्, 4. लब्धप्रणाशम् और 5. अपरीक्षितकारकम्। प्रस्तुत पुस्तक में पांचों प्रकरण दिये गये हैं।