मार्ग का साथी - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Marg ka sathi - Panchtantra - Vishnu Sharma by विष्णु शर्मा

मार्ग का साथी - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Marg ka sathi - Panchtantra - Vishnu Sharma

मार्ग का साथी

……नैकाकिना गन्तव्यम्

अकेले यात्रा मत करो

एक दिन ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपने गांव से प्रस्थान करने लगा। उसकी माता ने कहा- “पुत्र! कोई न कोई साथी रास्ते के लिये खोज लो। अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिये।”
ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया- “डरो मत मां! इस मार्ग में कोई उपद्रव नहीं है। मुझे जल्दी जाना है, इतने में साथी नहीं मिलेगा। मेरे पास साथी खोजने का समय नहीं है।” मां ने कुछ और उपाय न देख पड़ोस से एक ‘कर्कट’ ले लिया और अपने पुत्र ब्रह्मदत्त को कहा कि “यदि तुझे जाना ही है तो इस कर्कट को भी साथ लेता जा। यह तुझे बहुत सहायता देगा।”
ब्रह्मदत्त ने माता कहना मान कर्कट को ही साथी बना लिया; उसे कपूर की डिबिया में रखकर यात्रा के लिये चल दिया।
थोड़ी दूर जाकर जब वह थक गया और गर्मी बहुत सताने लगी तो उसने मार्ग के एक वृक्ष की छाया में विश्राम लिया। थका हुआ तो था ही, नींद आ गई। उसी वृक्ष के बिल में एक सांप रहता था। वह जब ब्रह्मदत्त के पास आया तो उसे कपूर की गंध आ गई। कपूर की गंध सांप को प्रिय होती है। सांप ने ब्रह्मदत्त के कपड़ों में से कपूर की डिबिया खोज ली, लेकिन जब उसे खाने लगा, कर्कट ने सांप को मार दिया।
ब्रह्मदत्त जब जागा तो देखा कि पास ही काला सांप मरा पड़ा है। उसके पास कपूर की डिबिया भी पड़ी थी। वह समझ गया कि यह काम कर्कट का ही है। प्रसन्न होकर वह सोचने लगा- “मां सच कहती थी कि पुरुष को यात्रा में कभी एकाकी नहीं जाना चाहिये। मैंने श्रद्धापूर्वक मां का वचन पूरा किया, इसीलिये काला सांप मुझे काट नहीं सका; अन्यथा मैं मर जाता।”

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इस कहानी के बाद स्वर्णसिद्धि अपने मित्र चक्रधर को वहीं छोड़कर अपने घर वापिस आ गया।

।। इति पंचम तन्त्र समाप्त ।।