लोभ बुद्धि पर परदा डाल देता है - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Lobh buddhi par parda dal deta hai - Panchtantra - Vishnu Sharma by विष्णु शर्मा

लोभ बुद्धि पर परदा डाल देता है

यो लौल्यात् कुरुते कर्म न चोदर्कमवेक्षते ।

विडम्बनामवाप्नोति स यथा चंद्रभूपतिः ।।

बिना परिणाम सोचे चंचल वृत्ति से कार्य का आरंभ करने वाला अपनी जग-हँसाई कराता है।

एक नगर के राजा चन्द्र के पुत्रों को बन्दरों से खेलने का व्यसन था। बन्दरों का सरदार भी बड़ा चतुर था। वह सब बन्दरों को नीतिशास्त्र पढ़ाया करता था। सब बन्दर उसकी आज्ञा का पालन करते थे। राजपुत्र भी उन बन्दरों के सरदार वानरराज को बहुत मानते थे।
उसी नगर के राजगृह में छो़टे राजपुत्र के वाहन के लिये कई मेढे भी थे। उन में से एक मेढा बहुत लोभी था। वह जब जी चाहे तब रसोई में घुस कर सब कुछ खा लेता था। रसोइये उसे लकड़ी से मार कर बाहिर निकाल देते थे।
वानरराज ने जब यह कलह देखा तो वह चिंतित हो गया। उसने सोचा ‘यह कलह किसी दिन सारे बन्दरसमाज के नाश का कारण हो जायेगा कारण यह कि जिस दिन कोई नौकर इस मेढ़े को जलती लकड़ी से मारेगा, उसी दिन यह मेढा घुड़साल में घुस कर आग लगा देगा। इससे कई घोड़े जल जायेंगे। जलन के घावों को भरने के लिये बन्दरों की चर्बी की मांग पैदा होगी। तब, हम सब मारे जायेंगे।’
इतनी दूर की बात सोचने के बाद उसने बन्दरों को सलाह दी कि वे अभी से राजगृह का त्याग कर दें। किंतु उस समय बन्दरों ने उसकी बात को नहीं सुना। राजगृह में उन्हें मीठे-मीठे फल मिलते थे। उन्हें छोड़ कर वे कैसे जाते! उन्होंने वानरराज से कहा कि "बुढ़ापे के कारण तुम्हारी बुद्धि मंद पड़ गई है। हम राजपुत्र के प्रेम-व्यवहार और अमृतसमान मीठे फलों को छोड़कर जंगल में नहीं जायेंगे।"
वानरराज ने आंखों में आंसू भर कर कहा- "मूर्खो! तुम इस लोभ का परिणाम नहीं जानते। यह सुख तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा।" यह कहकर वानरराज स्वयं राजगृह छोड़कर वन में चला गया।
उसके जाने के बाद एक दिन वही बात हो गई जिस से वानरराज ने वानरों को सावधान किया था। एक लोभी मेढा जब रसोई में गया तो नौकर ने जलती लकड़ी उस पर फैंकी। मेढे के बाल जलने लगे। वहाँ से भाग कर वह अश्‍वशाला में घुस गया। उसकी चिनगारियों से अश्‍वशाला भी जल गई। कुछ घोड़े आग से जल कर वहीं मर गये। कुछ रस्सी तुड़ा कर शाला से भाग गये।
तब, राजा ने पशुचिकित्सा में कुशल वैद्यों को बुलाया और उन्हें आग से जले घोड़ों की चिकित्सा करने के लिये कहा। वैद्यों ने आयुर्वेदशास्त्र देख कर सलाह दी कि जले घावों पर बन्दरों की चर्बी की मरहम बना कर लगाई जाये। राजा ने मरहम बनाने के लिये सब बन्दरों को मारने की आज्ञा दी। सिपाहियों ने सब बन्दरों को पकड़ कर लाठियों और पत्थरों से मार दिया।
वानरराज को जब अपने वंश-क्षय का समाचार मिला तो वह बहुत दुःखी हुआ। उसके मन में राजा से बदला लेने की आग भड़क उठी। दिन-रात वह इसी चिंता में घुलने लगा। आखिर उसे एक वन में ऐसा तालाब मिला जिसके किनारे मनुष्यों के पदचिह्न थे। उन चिन्हों से मालूम होता था कि इस तालाब में जितने मनुष्य गये, सब मर गये; कोई वापिस नहीं आया। वह समझ गया कि यहाँ अवश्य कोई नरभक्षी मगरमच्छ है। उसका पता लगाने के लिये उसने एक उपाय किया। कमल नाल लेकर उसका एक सिरा उसने तालाब में डाला और दूसरे सिरे को मुख में लगा कर पानी पीना शुरु कर दिया।
थोड़ी देर में उसके सामने ही तालाब में से एक कंठहार धारण किये हुए मगरमच्छ निकला। उसने कहा- "इस तालाब में पानी पीने के लिये आ कर कोई वापिस नहीं गया, तूने कमल नाल द्वारा पानी पीने का उपाय करके विलक्षण बुद्धि का परिचय दिया है। मैं तेरी प्रतिभा पर प्रसन्न हूँ। तू जो वर मांगेगा, मैं दूंगा। कोई-सा एक वर मांग ले।"
वानरराज ने पूछा- "मगरराज! तुम्हारी भक्षण-शक्ति कितनी है?"
मगरराज- "जल में मैं सैंकड़ों, सहस्त्रों पशु या मनुष्यों को खा सकता हूँ; भूमि पर एक गीडड़ भी नहीं।"
वानरराज- "एक राजा से मेरा वैर है। यदि तुम यह कंठहार मुझे दे दो तो मैं उसके सारे परिवार को तालाब में लाकर तुम्हारा भोजन बना सकता हूँ।"
मगरराज ने कंठहार दे दिया। वानरराज कंठहार पहिनकर राजा के महल में चला गया। उस कंठहार की चमक-दमक से सारा राजमहल जगमगा उठा। राजा ने जब वह कंठहार देखा तो पूछा- "वानरराज! यह कंठहार तुम्हें कहाँ मिला?"
वानरराज- "राजन्! यहाँ से दूर वन में एक तालाब है । वहाँ रविवार के दिन सुबह के समय जो गोता लगायगा उसे वह कंठहार मिल जायगा।"
राजा ने इच्छा प्रगट की कि वह भी समस्त परिवार तथा दरबारियों समेत उस तालाब में जाकर स्नान करेगा, जिस से सब को एक-एक कंठहार की प्राप्ति हो जायेगी।"
निश्चित दिन राजा समेत सभी लोग वानरराज के साथ तालाब पर पहुँच गये। किसी को यह न सूझा कि ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता। तृष्णा सबको अन्धा बना देती है। सैंकड़ों वाला हजारों चाहता है; हजा़रों वाला लाखों की तृष्णा रखता है; लक्षपति करोड़पति बनने की धुन में लगा रहता है। मनुष्य का शरीर जराजीर्ण हो जाता है, लेकिन तृष्णा सदा जवान रहती है। राजा की तृष्णा भी उसे उसके काल के मुख तक ले आई।
सुबह होने पर सब लोग जलाशय में प्रवेश करने को तैयार हुए। वानरराज ने राजा से कहा- "आप थोड़ा ठहर जायें, पहले और लोगों को कंठहार लेने दीजिये। आप मेरे साथ जलाशय में प्रवेश कीजियेगा। हम ऐसे स्थान पर प्रवेश करेंगे जहां सबसे अधिक कंठहार मिलेंगे।"
जितने लोग जलाशय में गये, सब डूब गये; कोई ऊपर न आया। उन्हें देरी होती देख राजा ने चिंतित होकर वानरराज की ओर देखा। वानरराज तुरन्त वृक्ष की ऊँची शाखा पर चढ़कर बोला- "महाराज! तुम्हारे सब बन्धु-बान्धवों को जलाशय में बैठे राक्षस ने खा लिया है। तुम ने मेरे कुल का नाश किया था; मैंने तुम्हारा कुल नष्ट कर दिया। मुझे बदला लेना था, ले लिया। जाओ, राजमहल को वापिस चले जाओ।"
राजा क्रोध से पागल हो रहा था, किंतु अब कोई उपाय नहीं था। वानरराज ने सामान्य नीति का पालन किया था। हिंसा का उत्तर प्रतिहिंसा से और दुष्टता का उत्तर दुष्टता से देना ही व्यावहारिक नीति है।
राजा के वापिस जाने के बाद मगरराज तालाब से निकला। उसने वानरराज की बुद्धिमत्ता की बहुत प्रशंसा की।

X X X

कहानी कहने के बाद स्वर्णसिद्धि ने चक्रधर से घर वापिस जाने की आज्ञा मांगी। चक्रधर ने कहा- “मुझे विपत्ति में छोड़ कर तुम कैसे जा सकते हो? मित्रों का क्या यही कर्त्तव्य है? इतने निष्ठुर बनोगे तो नरक में जाओगे।”
स्वर्णसिद्धि ने उत्तर दिया- “तुम्हें कष्ट से छुड़ाना मेरी शक्ति से बाहिर है। बल्कि मुझे भय है कि कहीं तुम्हारे संसर्ग से मैं भी इसी कष्ट से पीड़ित न हो जाऊँ। अब मेरा यहाँ से दूर भाग जाना ही ठीक है। नहीं तो मेरी अवस्था भी विकाल राक्षस के पंजे में फँसे वानर की सी हो जायेगी।”
चक्रधर ने पूछा- “किस राक्षस के, कैसे?”
स्वर्णसिद्धि ने तब राक्षस और वानर की यह कथा सुनाई-

You might also like

मित्र की शिक्षा मानो - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Mitra ki siksha mano - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

वैज्ञानिक मूर्ख - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Vaigyanik Moorakh - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

शेखचिल्ली न बनो - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Shekhchlli na bano - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

संगीतविशारद गधा - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Sangeetvisharad Gadha - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

पञ्चम तंत्र - अपरीक्षितकारकम् - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Pauncham Tantra - Apreekshitkarkam - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

मिलकर काम करो - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Milkar kaam karo - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

मार्ग का साथी - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Marg ka sathi - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 11, 2023

लालच बुरी बला है - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Lalach buri bla hai - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

एकबुद्धि की कथा - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Ekbuddhi ki katha - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

जिज्ञासु बनो - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Jigyashu Bano - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

बिना विचारे जो करे - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Bina vichare jo kare - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

चार मूर्ख पंडित - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Char Moorakh Pandit - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

भय का भूत - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Bhay ka Bhoot - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

अंधा, कुबड़ा और विकृत शरीर - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Andha, Kubda aur Vikrat Sharir - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Oct 10, 2023

उड़ती के पीछे भागना - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Udti ke pichhe bhagna - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 21, 2023

द्वितीय तंत्र - मित्रसंप्राप्ति - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Dvitya tantra - Mitrasamprapti - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 21, 2023

कर्महीन नर पावत नाहिं - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Karmheen nar pavat naahin - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 21, 2023

बिना कारण कार्य नहीं - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Bina karan kerya nahi - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 21, 2023

धन सब क्लेशों की जड़ है - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Dhan sab kleshon ki jad - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 21, 2023

अति लोभ नाश का मूल - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Ati lobh nash ka mool - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 21, 2023

बगुला भगत - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Bagula Bhagat - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 2, 2023

कथामुख- पंचतंत्र की कहानियाँ - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Kathamukh - Panchtantra ki kahaniyan - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Mar 1, 2023

अक्ल बड़ी या भैंस - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Akal badi ya Bhais - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Feb 28, 2023

अनधिकार चेष्टा - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Andhikar cheshta - Panchtantra - Vishnu Sharma

By विष्णु शर्मा · Feb 28, 2023