एकबुद्धि की कथा - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Ekbuddhi ki katha - Panchtantra - Vishnu Sharma by विष्णु शर्मा

एकबुद्धि की कथा

एक व्यवहार बुद्धि सौ अव्यावहारिक बुद्धियों से अच्छी है।

एक तालाब में दो मछलियाँ रहती थीं। एक थी शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली), दूसरी थी सहस्त्रबुद्धि (हजार बुद्धियों वाली)। उसी तालाब में एक मेंढक भी रहता था। उसका नाम था एकबुद्धि। उसके पास एक ही बुद्धि थी। इसलिये उसे बुद्धि पर अभिमान नहीं था। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को अपनी चतुराई पर बड़ा अभिमान था।
एक दिन संध्या समय तीनों तालाब के किनारे बात-चीत कर रहे थे। उसी समय उन्होंने देखा कि कुछ मछियारे हाथों में जाल लेकर वहाँ आये। उनके जाल में बहुत सी मछलियाँ फँस कर तड़प रही थीं। तालाब के किनारे आकर मछियारे आपस में बात करने लगे। एक ने कहा-
"इस तालाब में खूब मछलियाँ हैं, पानी भी कम है। कल हम यहाँ आकर मछलियां पकड़ेंगे ।"
सबने उसकी बात का समर्थन किया। कल सुबह वहाँ आने का निश्चय करके मछियारे चले गये। उनके जाने के बाद सब मछलियों ने सभा की। सभी चिन्तित थे कि क्या किया जाय। सब की चिन्ता का उपहास करते हुये सहस्त्रबुद्धि ने कहा- "डरो मत, दुनियां में सभी दुर्जनों के मन की बात पूरी होने लगे तो संसार में किसी का रहना कठिन हो जाय। सांपों और दुष्टों के अभिप्राय कभी पूरे नहीं होते; इसीलिये संसार बना हुआ है। किसी के कथनमात्र से डरना कापुरुषों का काम है। प्रथम तो वह यहाँ आयेंगे ही नहीं, यदि आ भी गये तो मैं अपनी बुद्धि के प्रभाव से सब की रक्षा कर लूँगी।" शतबुद्धि ने भी उसका समर्थन करते हुए कहा- "बुद्धिमान के लिए संसार में सब कुछ संभव है। जहां वायु और प्रकाश की भी गति नहीं होती, वहां बुद्धिमानों की बुद्धि पहुँच जाती है। किसी के कथनमात्र से हम अपने पूर्वजों की भूमि को नहीं छो़ड़ सकते। अपनी जन्मभूमि में जो सुख होता है वह स्वर्ग में भी नहीं होता। भगवान ने हमें बुद्धि दी है, भय से भागने के लिए नहीं, बल्कि भय का युक्तिपूर्वक सामना करने के लिए।"
तालाब की मछलियों को तो शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के आश्‍वासन पर भरोसा हो गया, लेकिन एकबुद्धि मेंढक ने कहा- "मित्रो! मेरे पास तो एक ही बुद्धि है; वह मुझे यहां से भाग जाने की सलाह देती है। इसलिए मैं तो सुबह होने से पहले ही इस जलाशय को छोड़कर अपनी पत्‍नी के साथ दूसरे जलाशय में चला जाऊँगा।" यह कहकर वह मेंढक, मेंढकी को लेकर तालाब से चला गया।
दूसरे दिन अपने वचनानुसार वही मछियारे वहाँ आये। उन्होंने तालाब में जाल बिछा दिया। तालाब की सभी मछलियां जाल में फँस गईं । शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने बचाव के लिए बहुत से पैंतरे बदले, किन्तु मछियारे भी अनाड़ी न थे। उन्होंने चुन-चुन कर सब मछलियों को जाल में बांध लिया। सबने तड़प-तड़प कर प्राण दिये।
संध्या समय मछियारों ने मछलियों से भरे जाल को कन्धे पर उठा लिया। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि बहुत भारी मछलियां थीं, इसीलिए इन दोनों को उन्होंने कन्धे पर और हाथों पर लटका लिया था। उनकी दुरवस्था देखकर मेंढक ने मेंढकी से कहा-
"देख प्रिये! मैं कितना दूरदर्शी हूँ। जिस समय शतबुद्धि कन्धों पर और सहस्त्रबुद्धि हाथों में लटकी जा रही है, उस समय मैं एकबुद्धि इस छोटे से जलाशय के निर्मल जल में सानन्द विहार कर रहा हूँ। इसलिए मैं कहता हूँ कि विद्या से बुद्धि का स्थान ऊँचा है, और बुद्धि में भी सहस्त्रबुद्धि की अपेक्षा एकबुद्धि होना अधिक व्यावहारिक है।"

X X X

यह कहानी पूरी होने के बाद चक्रधर ने पूछा-
“तो क्या मित्र की सलाह सदा माननी चाहिए?”
स्वर्णसिद्धि ने उत्तर दिया-
“मित्र के वचन का उल्लंघन ठीक नहीं है। जो विद्या-बुद्धि के अहंकार या लोभवश मित्र की बात को अनसुनी कर देते हैं वे अपने मित्र गीदड़ की बात न मानने वाले गधे की तरह कष्ट उठाते हैं।
चक्रधर ने पूछा- “वह कैसे?”
स्वर्णसिद्धि ने तब यह कथा सुनाई-

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