वैज्ञानिक मूर्ख - पंचतंत्र - विष्णु शर्मा | Vaigyanik Moorakh - Panchtantra - Vishnu Sharma
वैज्ञानिक मूर्ख
वरं बुद्धिर्न सा विद्या विद्याया बुद्धिरुत्तमा ।
बुद्धिहीना विनश्यन्ति यथा ते सिंहकारकाः ।।
बुद्धि की स्थान विद्या से ऊँचा है।
एक नगर में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किंतु बुद्धिरहित थे; चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किंतु बुद्धिमान था। चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाकर धन संग्रह करें। इसी विचार से वे विदेश-यात्रा को चल पड़े।
कुछ दूर जाकर उनमें से सबसे बड़े ने कहा-
“हम चारों विद्वानों में एक विद्या-शून्य है, वह केवल बुद्धिमान है। धनोपार्जन के लिये और धनिकों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये विद्या आवश्यक है। विद्या के चमत्कार से ही हम उन्हें प्रभावित कर सकते हैं। अतः हम अपने धन का कोई भी भाग इस विद्याहीन को नहीं देंगे। वह चाहे तो घर वापिस चला जाये।”
दूसरे ने इस बात का समर्थन किया। किंतु, तीसरे ने कहा- “यह बात उचित नहीं है। बचपन से ही हम एक दूसरे के सुख-दुःख के समभागी रहे हैं। हम जो भी धन कमायेंगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा। अपने-पराये की गणना छोटे दिल वालों का काम है। उदार-चरित व्यक्तियों के लिये सारा संसार ही अपना कुटुम्ब होता है। हमें उदारता दिखलानी चाहिये।”
उसकी बात मानकर चारों आगे चल पड़े। थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला। उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे। तीनों विद्याभिमानी युवकों ने कहा, “आओ, हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें। विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं।” यह कहकर तीनों उसकी हड्डियां बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गये। एक ने अस्थिसंचय किया, दूसरे ने चर्म, मांस, रुधिर संयुक्त किया, तीसरे ने प्राणों की संचार की प्रक्रिया शुरू की। इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किंतु बुद्धिमान मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा- “जरा ठहरो। तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो। वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खा जायेगा।”
वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। तब वह बुद्धिमान बोला- “यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है तो दिखलाओ। लेकिन एक क्षण ठहर जोओ, मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊँ।” यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया।
इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया। जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया। तीनों मारे गये।
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अतः शास्त्रों में कुशल होना ही पर्याप्त नहीं है। लोक-व्यवहार को समझने और लोकाचार के अनुकूर काम करने की बुद्धि भी होनी चाहिये। अन्यथा लोकाचार-हीन विद्वान भी मूर्ख पंडितों की तरह उपहास के पात्र बनते हैं।”
चक्रधर ने पूछा- “कौन से मूर्ख पंडितों की तरह?”
स्वर्णसिद्धि युवक ने तब यह अगली कथा सुनाई-