लकड़हारा और लोमड़ी | Lakadhara aur lomdi by आकाश

लकड़हारा और लोमड़ी | Lakadhara aur lomdi

लकड़हारा और लोमड़ी

एक लोमड़ी के पीछे शिकारी पड़े थे। लोमड़ी भागते-भागते एक लकड़हारे के पास पहुँची और उससे शरण माँगने लगी। लकड़हारे ने अपनी झोपड़ी की ओर इशारा करते हुए लोमड़ी से उसमें छिप जाने को कह दिया। थोड़ी ही देर में शिकारी वहाँ आ पहुँचे। उन्होने लकड़हारे से पूछा, “क्या तुम्हें कोई लोमड़ी दिखी यहाँ?” लकड़हारे ने जवाब दिया, “नहीं,” लेकिन चुपचाप अपनी झोपड़ी की ओर इशारा कर दिया। शिकारी उसके इशारे को नहीं समझ पाए और वहाँ से चले गए। लोमड़ी झोपड़ी से बाहर निकलकर आई और भागने लगी। लकड़हारे ने उसे आवाज लगाई और कहा,
“तुम कितनी कृतघन हो! अपनी जान बचाने के लिए तुमने मुझे धन्यवाद तक नहीं दिया!”
लोमड़ी रूखे स्वर में बोली, “अगर तुम्हारे बोल की तरह तुम्हारे इशारे भी भरोसे लायक होते तो मैं तुम्हें धन्यवाद जरूर देती।”