दो बिल्लियों की कहानी | Do billiyon ki kahani by विकास

दो बिल्लियों की कहानी | Do billiyon ki kahani

दो बिल्लियों की कहानी

एक निर्धन वृद्ध महिला एक छोटी-दुबली बिल्ली के साथ एक झोपड़ी में रहती थी। बिल्ली बचे-खुचे टुकड़ों और कभी-कभार मिलने वाले पतले-से दलिया से ही अपना पेट भरती थी। एक दिन सुबह, दुबली बिल्ली ने सामने वाले मकान की दीवार के पास एक मोटी बिल्ली देखी। दुबली बिल्ली ने मोटी बिल्ली को आवाज़ लगाई, “अरे सहेली, ऐसा लगता है कि तुम तो हर दिन दावत के मजे उड़ाती हो। मुझे भी बता दो तुम्हें इतना सारा खाना कहाँ से मिल जाता है।”
मोटी बिल्ली ने जवाब दिया, “राजा की चौकी पर, और कहाँ मिलता है! हर दिन जब राजा खाना खाने बैठता है, तो मैं उसकी चौकी के निचे छुप जाती हूँ और वहाँ पर गिरने वाले टुकड़े चुपके उठा-उठाकर खाती रहती हूँ।” दुबली बिल्ली आह भरकर रह गई। मोटी बिल्ली ने फिर कहा, “मैं तुम्हे राजा के महल में कल ले चलूँगी। लेकिन याद रखना, वहाँ पर तुमको छिपकर रहना पड़ेगा।”
“अरे बाह! धन्यवाद!” बोलकर बिल्ली ख़ुशी के मारे म्याऊँ-म्याऊँ चिल्लाने लगी और अपने मालकिन को बताने चल दी। वृद्ध महिला ने जब उसकी बात सुनी तो वह प्रसन्न नहीं हुई और समझाने लगी, “मेरी विनती है की तुम यहीं पर रहो और यहाँ मिलने वाले दलिए से ही संतुष्ट रहो। अगर वहाँ पर राजा के नौकरों-चाकरों ने तुम्हें चोरी करते देख लिया तो क्या होगा?”
लेकिन दुबली बिल्ली लालच में फँस चुकी थी। उसने महिला की एक न सुनी। अगले दिन दोनों बिल्लियाँ ख़ुशी-खुशी महल की ओर चल दी। उधर, एक दिन पहले ही राजा के भोजन-कक्ष में बहुत सारी बिल्लियाँ घुस आई थी। इससे नाराज होकर राजा ने आदेश दिया था कि महल में घुसने वाली हर बिल्ली को मार दिया जाए।
जब मोटी बिल्ली चुपके-चुपके महल के द्वार से घुस रही थी, तो एक दूसरी बिल्ली ने उसे राजा के आदेश के बारे में बताया। उसकी बात सुनकर मोटी बिल्ली तुरंत वहाँ से भाग गई। उधर, दुबली बिल्ली चुपके-चुपके भोजन-कक्ष तक पहुँच चुकी थी। उत्साह में आकर उसने एक रोशनदान से अंदर घुस गई। वह एक मछली का टुकड़ा उठाने ही वाली थी कि राजा के नौकर ने उसे देख लिया और मार डाला।