जादू - मानसरोवर 2 - मुंशी प्रेमचंद | Jaadu - maansarovar 2 - munshi premchand by मुंशी प्रेमचंद

जादू - मानसरोवर 2 - मुंशी प्रेमचंद | Jaadu - maansarovar 2 - munshi premchand

जादू

नीला,‘‘तुमने उसे क्यों लिखा?’’
मीना,‘‘किसको?’’
‘‘उसी को!’’
‘‘मैं नहीं समझती!’’
‘‘ख़ूब समझती हो! जिस आदमी ने मेरा अपमान किया, गली-गली मेरा नाम बेचता फिरा, उसे तुम्हारा मुंह लगाना उचित है?’’
‘‘तुम गलत कहती हो!’’
‘‘तुमने उसे ख़त नहीं लिखा?’’
‘‘कभी नहीं।’’
‘‘तो मेरी गलती थी क्षमा करो। मेरी बहन न होती, तो मैं तुमसे यह सवाल भी न पूछती।’’
‘‘मैंने किसी को ख़त नहीं लिखा।’’
‘‘मुझे यह सुनकर ख़ुशी हुई।’’
‘‘तुम मुस्कराती क्यों हो?’’
‘‘मैं?’’
‘‘जी हां, आप!’’
‘‘मैं तो ज़रा भी नहीं मुस्कराई।’’
‘‘मैंने अपनी आंखों देखा।’’
‘‘अब मैं कैसे तुम्हें विश्वास दिलाऊं?’’
‘‘तुम आंखों में धूल झोंकती हो।’’
‘‘अच्छा मुस्कराई। बस, या जान लोगी?’’
‘‘तुम्हें किसी के ऊपर मुस्कराने का क्या अधिकार है?’’
‘‘तेरे पैरों पड़ती हूँ नीला, मेरा गला छोड़ दे। मैं बिल्कुल नहीं मुस्कराई।’’
‘‘मैं ऐसी अनीली नहीं हूँ।’’
‘‘यह मैं जानती हूँ।’’
‘‘तुमने मुझे हमेशा झूठी समझा है।’’
‘‘तू आज किसका मुंह देखकर उठी है?’’
‘‘तुम्हारा।’’
‘‘तू मुझे थोड़ी संखिया क्यों नहीं दे देती?’’
‘‘हाँ, मैं तो हत्यारन हूँ ही।’’

‘‘मैं तो नहीं कहती।’’
‘‘अब और कैसे कहोगी, क्या ढोल बजाकर? मैं हत्यारन हूँ, मदमाती हूँ, दीदा-दिलेर हूँ, तुम सर्वगुणागरी हो, सीता हो, सावित्री हो। ख़ुश?’’
‘‘लो कहती हूँ, मैंने उसे पत्र लिखा फिर तुमसे मतलब? कौन होती हो मुझसे पूछने वाली?’’
‘‘अच्छा किया लिखा, सचमुच मेरी बेवकूफ़ी थी कि मैंने तुमसे पूछा।’’
‘‘हमारी ख़ुशी, हम जिसको चाहेंगे ख़त लिखेंगे। जिससे चाहेंगे बोलेंगे। तुम कौन होती हो रोकने वाली? तुमसे तो मैं नहीं पूछने जाती। हाँ, रोज तुम्हें पुलिन्दों पत्र लिखते देखती हूँ।’’
‘‘जब तुमने शर्म ही भून खाई, तो जो चाहो करो अख़्तियार है।’’
‘‘और तुम कब से बड़ी लज्जावती बन गईं? सोचती होगी, अम्माँ से कह दूंगी, यहां इस की परवाह नहीं है। मैंने उन्हें पत्र भी लिखा, उनसे पार्क में मिली भी। बातचीत भी की। जाकर अम्माँ से, दादा से, सारे मुहल्ले से कह दो।’’
‘‘जो जैसा करेगा, आप भोगेगा, मैं क्यों किसी से कहने जाऊं?’’
‘‘ओ हो, बड़ी धैर्यवाली, यह क्यों नहीं कहती, अंगूर खट्टे हैं?’’
‘‘जो तुम कहो, वही ठीक है।’’
‘‘दिल में जली जाती हो।’’
‘‘मेरी बला जले।’’
‘‘रो दो जरा।’’
‘‘तुम ख़ुद रोओ, मेरा अंगूठा रोए।’’
‘‘उन्होंने एक रिस्टवाच भेंट दी है, दिखाऊं?’’
‘‘मुबारक! मेरी आंखों का सनीचर दूर होगा।’’
‘‘मैं कहती हूँ, तुम इतनी जलती क्यों हो?’’
‘‘अगर मैं तुमसे जलती हूँ तो मेरी आंखें पट्टम हो जाएं।’’
‘‘तुम जितना जलोगी, मैं उतना ही जलाऊंगी।’’

‘‘मैं जलूंगी ही नहीं।’’
‘‘जल रही हो साफ’’
‘‘कब संदेशा आएगा?’’
‘‘जल मरो।’’
‘‘पहले तेरी भांवरें देख लूं।’’
‘‘भांवरों की चाट तुम्हीं को रहती है।’’
‘‘तो क्या बिना भांवरों का ब्याह होगा?’’
‘‘ये ढकोसले तुम्हें मुबारक। मेरे लिए प्रेम काफी है।’’
‘‘तो क्या तू सचमुच।।’’
‘‘मैं किसी से नहीं डरती।’’
‘‘यहां तक नौबत पहुंच गई! और तू कह रही थी, मैंने उसे पत्र नहीं लिखा!’’
‘‘क्यों अपने दिल का हाल बतलाऊं?’’
‘‘मैं तो तुझसे पूछती न थी, मगर तू आप-ही-आप बक चली।’’
‘‘तुम मुस्कराई क्यों?’’
‘‘इसलिए कि यह शैतान तुम्हारे साथ भी वही दगा करेगा, जो उसने मेरे साथ किया और फिर तुम्हारे विषय में भी वैसी ही बातें कहता फिरेगा और फिर तुम मेरी तरह रोओगी।’’
‘‘तुमसे उन्हें प्रेम नहीं था?’’
‘‘मुझसे! मेरे पैरों पर सिर रखकर रोता और कहता कि मैं मर जाऊंगा, जहर खा लूंगा।’’
‘‘सच कहती हो?’’
‘‘बिल्कुल सच।’’
‘‘यह तो वह मुझसे भी कहते हैं।’’
‘‘सच?’’
‘‘तुम्हारे सिर की कसम।’’
‘‘और मैं समझ रही थी, अभी वह दाने बिखेर रहा है।’’
‘‘क्या वह सचमुच।’’
‘‘पक्का शिकारी है।’’
मीना सिर पर हाथ रखकर चिंता में डूब गई।