शान्ति-2 - मानसरोवर 7 - मुंशी प्रेमचंद | shanti-2 - maansarovar 7 - munshi premchand
जब मैं ससुराल आई, तो बिलकुल फूहड़ थी। न पहनने-ओढ़ने को सलीका , न बातचीत करने का ढंग। सिर उठाकर किसी से बातचीत न कर सकती थीं। आँखें अपने आप झपक जाती थीं। किसी के सामने जाते शर्म आती, स्त्रियों