सुन्दर कांड - श्री रामचरित मानस | Sundar Kand - Shri Ramcharit Manas
जामवंत के बचन सुहाए । सुनि हनुमंत हृदय अति भाए ।। तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई । सहि दुख कंद मूल फल खाई ।। जब लगि आवौं सीतहि देखी । होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी ।। यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा