भेड़िया आया की कहानी | Bhediya aaya ki kahani by विकास

भेड़िया आया की कहानी | Bhediya aaya ki kahani

भेड़िया आया की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक चरवाहा रहता था। उसके पास बहुत सारी भेड़ें थीं, जिन्हें चराने वह पास के जंगल में जाया करता था। हर रोज सुबह वह भेड़ों को जंगल ले जाता और शाम तक वापस घर लौट आता। पूरा दिन भेड़ घास चरतीं और चरवाहा बैठा-बैठा ऊबता रहता। इस वजह से वह हर रोज खुद का मनोरंजन करने के नए नए तरीके ढूँढ़ता रहता था।
एक दिन उसे एक नई शरारत सूझी। उसने सोचा, क्यों न इस बार मनोरंजन गाँव वालों के साथ किया जाए। यही सोच कर उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया “बचाओ-बचाओ भेड़िया आया, भेड़िया आया।”
उसकी आवाज सुनकर गाँव वाले लाठी और डंडे लेकर दौड़ते हुए उसकी मदद करने आए। जैसे ही गाँव वाले वहाँ पहुँचे, उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भेड़िया नहीं है और चरवाहा पेट पकड़ कर हँस रहा था। “हाहाहा....., बड़ा मजा आया। मैं तो मजाक कर रहा था। कैसे दौड़ते-दौड़ते आए हो सब, हाहाहा.......।” उसकी ये बातें सुन कर गाँव वालों का चेहरा गुस्से से लाल-पीला होने लगा। एक आदमी ने कहा कि हम सब अपना काम छोड़कर, तुम्हें बचाने आए हैं और तुम हँस रहे हो? ऐसा कह कर सभी लोग वापस अपने अपने काम की ओर लौट गए।
कुछ दिन बीतने के बाद, गाँव वालों ने फिर से चरवाहे की आवाज़ सुनी। “बचाओ बचाओ भेड़िया आया, बचाओ।” यह सुनते ही, वो फिर से चरवाहे की मदद करने के लिए दौड़ पड़े। दौड़ते-दौड़ते गाँव वाले वहाँ पहुंचे, तो क्या देखते हैं? वो देखते हैं कि चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ आराम से खड़ा है और गाँव वालों की तरफ देख कर जोर-जोर से हँस रहा है। इस बार गाँव वालों को और गुस्सा आया। उन सभी ने चरवाहे को खूब खरी-खोटी सुनाई, लेकिन चरवाहे को अक्ल न आई। उसने फिर दो-तीन बार ऐसा ही किया और मजाक में चिल्लाते हुए गाँव वालों को इकठ्ठा कर लिया। अब गाँव वालों ने चरवाहे की बात पर भरोसा करना बंद कर दिया था।
एक दिन गाँव वाले अपने खेतों में काम कर रहे थे और उन्हें फिर से चरवाहे के चिल्लाने की आवाज आई- “बचाओ-बचाओ भेड़िया आया, भेड़िया आया, बचाओ” लेकिन इस बार किसी ने भी उसकी बात पर गौर नहीं किया। सभी आपस में कहने लगे कि इसका तो काम ही है दिन भर यूँ ही मजाक करना। चरवाहा लगातार चिल्ला रहा था, “अरे कोई तो आओ, मेरी मदद करो, इस भेड़िए को भगाओ”, लेकिन इस बार कोई भी उसकी मदद करने वहाँ नहीं पहुंचा।
चरवाहा चिल्लाता रहा, लेकिन गाँव वालें नहीं आए और भेड़िया एक-एक करके उसकी सारी भेड़ों को खा गया। यह सब देख चरवाहा रोने लगा। जब बहुत रात तक चरवाहा घर नहीं आया, तो गाँव वाले उसे ढूँढते हुए जंगल पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि चरवाहा पेड़ पर बैठा रो रहा था।
गाँव वालों ने किसी तरह चरवाहे को पेड़ से उतारा। उस दिन चरवाहे की जान तो बच गई, लेकिन उसकी प्यारी भेड़ें भेड़िए का शिकार बन चुकी थीं। चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हो गया था और उसने गाँव वालों से मांफी मांगी। चरवाहा बोला “मुझे माफ कर दो भाइयों, मैंने झूठ बोल कर बहुत बड़ी गलती कर दी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।”
कहानी से सीख
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलना बहुत बुरी बात होती है। झूठ बोलने की वजह से हम लोगों का विश्वास खोने लगते हैं और समय आने पर कोई हमारी मदद नहीं करता।